क्यों माना जाता है होलाष्टक को अशुभ, जाने इससे जुड़ी पौराणिक कथा, आज हम आपको बताएंगे की होली त्यौहार बहुत ही अच्छा होता है इसलीये आपको बता दे की होली पर कुच्छ ऐसी बाते करना जो की बहुत ही अलग खास तरीके से बनाते है इसलए आपको बता दे की वैसे ही होलाष्टक को आशुभ माना जाता है जिसमे की सनातन धर्म में होली के पर्व को बेहद उत्साह के साथ मनाया जाता है. इस त्योहार से 8 दिन पहले से होलाष्टक की शुरुआत होती है. हम आपको बता दे की इस बार होली 25 मार्च को मनाई जाएगी. जिसमे पंचांग के अनुसार, शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि का आरंभ 16 मार्च की रात 9 बजकर 39 मिनट से होगी और जिसका समापन 17 मार्च की सुबह 9 बजकर 53 मिनट पर होगा. ऐसे में होलाष्टक 17 मार्च से लगेगा, जो 24 तारीख को समाप्त होगा. इसके बाद 25 मार्च को होली मनाई जाएगी. धार्मिक मान्यता है कि होलाष्टक के दौरान मांगलिक कार्यों के शुभ फल प्राप्त नहीं होते हैं।
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आचार्य प्रदीप लखेड़ा ने होलाष्टक के बारे मे क्या बताया
हम आपको बता दे की आचार्य प्रदीप लखेड़ा ने बताया कि होलाष्टक के दौरान बहुत से काम नहीं करना चाहिए जिससे की आपको बाद मे कोई हानि नहीं होंगी हम आपको बता दे की अगर आप अपने कामों को अशुभ नहीं बनाना चचते है तो आप इन कामों को नहीं करना होंगा जिसमे शादी, नामकरण, गृह-प्रवेश, मुंडन संस्कार जैसे कई तरह के अनुष्ठानों पर रोक लग जाती है. आपको बता दे की होलाष्टक की अवधि के समय यज्ञ और हवन भी नहीं करना चाहिए. इस दौरान निवेश या व्यापार भी नहीं शुरू किया जाता. हम आपको बता दे की बहुत से काम नहीं करना चचिए जिससे की आपको ऐसा करने से नुकसान का खतरा अधिक बढ़ जाता है. होलाष्टक के दौरान नए मकान, चल-अचल संपत्ति जैसे गहने और गाड़ी की खरीदारी भी नहीं करनी चाहिए. साथ ही इस दौरान मकान का निर्माण भी नहीं शुरू करना चाहिए।
होलाष्टक से जुड़ी पौराणिक कथा
हम आपको बता दे की होलाष्टक की जुड़ी कहानी होती है जिससे की इसके लिए बहुत सी खास पौराणिक कहानी होती है जो की बहुत सालों पहले राजा हिरण्यकश्यप ने अपने बेटे प्रह्लाद जो की विष्णु जी के परम भक्त को मारने के लिए फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि तय की थी. आपको बता डे की इस तारीख से 8 दिन पहले हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को कई बाते सुनाई थी और यातनाएं दी थी प्रह्लाद को इतने कष्ट इसलिए दिए गए थे ताकि वह डर कर अपने पिता का भक्त बन जाए, लेकिन इन यातनाओं को सहन करने के बाद भी प्रह्लाद ने भगवान विष्णु की भक्ति का मार्ग नहीं छोड़ा. जिसके बाद हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से मदद मांगी. होलिका को वरदान मिला था कि वह अग्नि में नहीं जलेगी. हिरण्यकश्यप ने बहन को प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठने का आदेश दिया ताकि वह जलकर मर जाए. अपने भाई के आदेश का पालन करते हुए होलिका प्रह्लाद को लेकर आग में बैठ गई लेकिन तब भी वह भगवान विष्णु के नाम का जाप करते रहे और नारायण की कृपा से प्रह्लाद बच गए और होलिका उस आग में जलकर भस्म हो गई. यह सारी घटना उन्हीं 8 दिनों में हुई, जिन्हें होलाष्टक के नाम से जाना जाता है. यही कारण है कि होली के 8 दिन पहले सारे शुभ काम वर्जित हो जाते हैं।